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अस्तित्व

गाँव में रहता हूँ
शहर सोने जाता हूँ
नींद न आई रात तो
झाँका आकाश
हँस रहा था
कहता रहा जाओ सो जाओ
मुझे भी सोना है
उठना भी है तुमसे पहले
सूरज लेकर भी आना है
तुम से अधिक जिम्मेदारी है मुझ पर
मैं इच्छाओं से नहीं चलता
यदि चलता तो सुबह नहीं होती
न होती रात
हाँ तुम्हारा तो अस्तित्व नहीं होता।

– विनोद गुर्जर