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गुमनाम शायर

वह एक गुमनाम शायर है
जो सारा वक़्त एक आलम ए हैरत में रहता है
हवाओं में ना जाने किसकी एक सूरत बनाता है
वही शायर जो नज़्मों में
किसी बे आसरा उम्मीद की लौ रकम करता है
ख्यालों के नये हर रोज़ कुछ पैकर बनाता है
हवा के अक्स छू कर जो तुम्हें महसूस करता है
जो पढ़ता रहता है वह सारे खत
जो कभी भेजे नहीं तुमने
वह बातें जो तुम्हारे दिल में सोती है
उसकी नज़्में होती है
वह साये जो तुम्हारी चश्मे हैरां में मचलते हैं
वहीं सरमाया हैं उसके ख्यालों का

नजमू सहर