जिंदगी के पन्ने

जिंदगी भी किताब से कम नहीं है कुछ पन्नों के बीच कुछ सूखे फूल कुछ पन्नों को फाड़ कर कुछ पन्नों को मोड़ कर कुछ पन्नों पर कुछ लिख कर…

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शहर की छत

अब शाम होती है तो घर की छतों में लोग नहीं होते, हाँ, पानी की टंकियाँ होती हैं... डीटीएच की छतरियां होती हैं... खिड़की से चिपकी AC की मशीनें होती…

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