एक उम्र ‘गुस्ताखियों’ के लिए

एक उम्र 'गुस्ताखियों', के लिए भी  होनी चाहिए... ये कम्बक्त जिंदगी तो.., बस... 'अदब और लिहाज' में ही गुजर गई। - कंचना खपरे

Continue Readingएक उम्र ‘गुस्ताखियों’ के लिए

उम्मीद

उठो मेरे हौसले, अब मत ऊँघो... लो वही अंगड़ाई, एक बार फिर से बेफिक्री की...इश्क़ की... जिन्दा रहने की नहीं..जीने की... उठो... उठो और देखो तुम्हे जगाने, किरणों में छुपकर…

Continue Readingउम्मीद

End of content

No more pages to load