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ग़ज़ल

कितनी ख़मोशी कितना शोर,,..
इक खिड़की के दोनों ओर..!!

हाँ मैं अज़ल से झूठा हूँ,,..
मेरी बात पे कैसा ज़ोर..!!

हम सब उल्टे लटके हैं,,..
उसके हाथों में है डोर..!!

मौला अपने आदम देख,,..
आदम क्या हैं! आदम-ख़ोर..!!

अब इस घर में है ही क्या,,..
अब इस घर में कैसे चोर..!!

वो मेरे सर की दस्तार,,..
मैं उसके आँचल का छोर..!!

देखने वाले मौसम देख,,..
हाय ये बारिश हाय ये मोर..!!

-निवेश साहू