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सीवर का ढ़क्कन

आज तीसरे दिन कर्फ्यू में चार घंटे की छूट दी गई थी—– हम लोग हालात नियंत्रण के लिए गश्ती पर निकले हुए थे— रास्ते में आम जनता से अधिक रैपिड एक्शन फोर्स के जवान नज़र आ रहे थे। सड़कों के किनारे लगे अधजले अधफटे बैनर पोस्टर दंगों की निशानदेही कर रहे थे।
अपनी गाड़ी से आगे बढ़ते हुए मैंने देखा कि एक सीवर का ढ़क्कन ऊपर — नीचे उदक रहा है।
मैं ने फ़ौरन गाड़ी रूकवाया।
 सीवर के क़रीब पहुंचने पर ये मालूम हुआ कि अंदर से कोई सीवर के ढ़क्कन को खोलने की कोशिश कर रहा है—-मैं ने जवानों से ढ़क्कन हटाने को कहा।सीवर का ढ़क्कन खुलने के बाद जब अंदर झांका तो दंग रह गया—
दो नौजवान गंदे पानी में उकड़ू बैठे हुए थे। उनके कपड़े कीचड़ से सने हुए थे। उनके चेहरे पर मौत का ख़ौफ़ साफ़ नज़र आ रहा था —ढ़क्कन खुलते ही वो दोनों– हाथ जोड़कर रोने लगे। उनके गले से ठीक ढंग से आवाज़ भी नही निकल पा रही थी — सर — हमें — बा–हर — निका — लें —
बहरहाल कीचड़ से लथपथ और बदबू में सने हुए—दोनों लड़कों को बाहर निकाला गया।
इस बीच एंबुलेंस भी आ चुकी थी।बाहर निकलने के बाद, दोनों लड़के गहरी गहरी सांसें लेने लगे। दोनों के पैरों को कीड़े मकोड़ों ने काट खाया था जिनसे अभी भी ख़ून बह रहा था।उनके शरीर के कई हिस्सों पर जा बजा जोंक चिपके हुए ख़ून पी रहे थे और तेलचट्टे और कीड़े रेंग रहे थे। उन्हें झाड़ने या हटाने की भी उनके भीर ताक़त नही बची थी।
दोनों को जल्दी जल्दी एंबुलेंस में लिटाया गया।  एंबुलेंस चलने के पहले ही एक नौजवान बोल पड़ा—-
अंदर–दो जने — और हैं—सर! हमें समझते देर नही लगी कि सीवर में दो और लोग फंसे हुए हैं —-
पुलिस का एक जवान सीवर में झांकते हुए बोला —-सर—-अंदर दो डेड बॉडी नज़र आ रही हैं।
मेरे मुँह से सहसा ये आवाज़ निकल गई – – – – उफ़्फ़!!! 
बहरहाल बड़ी मुशक्कत से दोनों लाशों को बाहर निकाला गया—– जो पानी में फूल कर सड़ने लगे थे। बदबू के मारे नाक नही दिया जा रहा था।
अगले दिन ज़िंदा बचे दोनों लड़कों के बयान से मालूम हुआ कि एक का नाम महेश और दूसरे का नाम मक़बूल है। मरने वाले माजिद और मनोहर थे।
 उनमें से एक ने बताया —-
 हम लोग प्रधानमंत्री का भाषण सुनने आए थे। अभी प्रधानमंत्री का भाषण शुरू भी नही हुआ था कि सभा स्थल के बाहर कहीं से धमाके की आवाज़ सुनाई पड़ी। पलक झपकते ही अफ़वाहों का बाज़ार गर्म हो गया और लोगों में भगदड़ मच गई।आतंकवादी हमला — आतंकवादी हमला —- का शोर सुनकर हम लोग भी भागने लगे।
 लोग जान बचाने के लिए जिधर सुझाई दे रहा था उधर भागे जा रहे थे। उसी में कुछ लोग मौक़े का फ़ायदा उठाकर लूटने पाटने में मसरूफ़ हो गए थे।
हालात की गंभीरता को देखते हुए घंटे भर में कर्फ्यू का ऐलान होने लगा।गाड़ियों के सायरन चीखने लगे —-
संघत छूटने के डर से हम चारों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ रखा था।
 घरों और दुकानों के सारे दरवाज़े बंद हो चुके थे। कहां जाएं, किसके घर में घुसें—- कौन इस आफ़त में हमें पनाह देगा ——ये समझ में नही आ रहा था।
 ये सोचते हुए हम चारों दोस्त भागे जा रहे थे —- भागे जा रहे थे, तभी – – – पीछे गली से गुज़र रही पुलिस की गाड़ी से फ़ायरिंग की आवाज़ आई—-धांय —-धांय—-
ऐसा लगा–जैसे ये फायरिंग हम लोगों पर की गई थी —-
हम लोग हांफ भी रहे थे और कांप भी रहे थे—–
दौड़ने के क्रम में हम में से किसी एक का पैर सीवर के अधखुले ढ़क्कन से टकराया।वो लड़खड़ा कर गिरने लागा – – – हाथ पकड़े होने के चलते, एक साथ हम चारों ही गिर पड़े—–
सीवर का ख़्याल आते ही हम लोगों को तत्काल छुपने के लिए सीवर ही सुरक्षित स्थान लगा।
इस तरह, एक के बाद एक, हम चारों लोग, सीवर में उतरते चले गए और उसका ढ़क्कन किसी तरह से बंद कर लिया.

-अब्दुल ग़फ़्फ़ार