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शिल्पकार

मैं खुद को गढ़ रहा हूँ
और भी ज्यादा खुद को गढ़ना चाहता हूँ
जिंदगी की किताब को हमसफ़र बनाकर
जिंदगी की किताब को पढ़ना चाहता हूँ

यूँ तो हरतरफ बेईमानी,लाचारी,बेबसी
नज़र आती है लोगों की आँखों में
छल, कपट और लालच की भूख नज़र आती है
मैं ऐसी आदतों पर अब वार करना चाहता हूँ
मैं खुद को हर तरह से हर सोच में गढ़ना चाहता हूँ

सामने आयी हुई हर विपत्ति से
रण योद्धा की तरह लड़ना चाहता हूँ
स्वार्थ के दलदल से निकलकर
निःस्वार्थ की पवित्र धारा में निरंतर बहना चाहता हूँ
मैं खुद को और भी ज्यादा गढ़ना चाहता हूँ

आत्मा मर चुकी है,
सिर्फ शरीर के ढाँचे लेकर लोग जी रहे हैं
मैं इन अशान्त चलते फिरते बेईमान मुर्दों से नहीं
बल्कि शांत दफन सच्चे मुर्दों की
सच्ची आवाज सुनना चाहता हूँ
मैं खुद को हर तरह से गढ़ना चाहता हूँ…

-शुभांक शुक्ला