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मन

दिल कहने में ही तुझे डर लगता है
मन कह दो संतोष भँवर लगता है।।

शुरू भी तुम से, अंत भी तुमसे..
ये जीवन मेरा नहीं, बस तेरा ही सफ़र लगता है

बेज़ुबां होकर भी इतना कुछ बोल जाता है।
बस में होती हूँ तेरे और तू खेल ख़ेल जाता है।।

पहचान तो है मुझको
दो तरफ़ा होना तेरी फ़ितरत में शामिल है,
तो फिर भी क्यों ये, तेरी डगर चल देता है।।

उस रोज़ तू आया किसी पर ऐसे,
वारुणी में मदमस्त डूबता रहा कोई जैसे,,
बदला उस वक़्त से तू कुछ ऐसे,,
मन होकर मेरा,
तू दिल किसी और का लगता है।

– अनुजा श्रीवास्तव