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बाज़ार | 1

का बात है बेटा,
दू दिन से रात में खाना खाये नहीं आत हो,
कौनो दूसर जगह जाए लगे हो का…?

अरे नहीं आंटी, आपके अलावे कहां जाएंगे।
इस शहर में बस आप ही के पास तो
थोड़ा अपनापन का एहसास होता है।
आपकी बोली, आपके हाथ का पराठा…
ये सब मुझे अपनी मां की याद दिलाता है।

ई बात तो तुम पहिले भी कहे हो…
इहे कारण तो हम और परेशान हो जाते हैं,
जब तुम खाना खाये नहीं आते हो।

क्या करें आंटी,
दो दिन से ऑफिस में मिनट भर भी फुर्सत नहीं मिल रही है…
टारगेट ही पूरा नहीं हो पा रहा…
और रात में जब सब काम निपटा कर मैं निकलता हूं
आप दुकान बंद कर चुकी होती हैं।

-राहुल रंजन