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बाहर रहने के पाँचवें साल

बाहर रहने के पाँचवें साल
आप महसूस करते हैं
कि अब खरीद लिया जाए
कपड़े धोने का ब्रश
धोबी की धुलाई से
जल्दी खराब हो जाते हैं अच्छे कपड़े।

बाहर रहने के पाँचवें साल
आप जान जाते हैं
कि प्याज काटते हुए भी
रचे जा सकते हैं कालजयी गीत।

बाहर रहने के पाँचवें साल
आप महसूस करते हैं
अपने भीतर एक माँ,
जो कविता पढ़ने जितनी ही
तल्लीनता से बनाती है रोटियां,
घर की रोटियों जैसी ही गोल, मुलायम।

बाहर रहने के पाँचवें साल
आप महसूस करते हैं
आपमें है एक बहन,
जो डांट कर याद दिलाती है
ब्लैक जीन्स को पलटकर
सुखाने के लिए डालना।

बाहर रहने के पाँचवें साल
आप महसूस करते हैं खुद में एक पिता
जो दिसम्बर की सर्द सुबह
ठीक 7:30 पर पहुँच जाता है बस स्टॉप
और एटीएम से सैलरी निकलते वक़्त
ध्यान से देखता है बकाया राशि।

बाहर रहने के पाँचवें साल
यह भी होता है
किसी भीड़ भरे चौराहे पर
पापा-पापा कहती कोई बच्ची
पीछे से आपका हाथ पकड़ लेती है
और आपके पलटते ही घबराकर आगे बढ़ जाती है।

उम्र के दोराहे
उस चौराहे
पर खड़े आप सोचते हैं
कि यह भी हो सकते थे हम,
आज की तारीख में
लेकिन आपने चुना….. हहा
खैर छोड़ो
चाय बना लो यार।

– रचित दीक्षित