You are currently viewing बाकी है

बाकी है

जीवन के इस मरूस्थल में जीवन जीना बाकी है,
रिक्तता के साये में भाव आकांक्षा का अभी बाकी है,

कठिनाइयों के झंझावात में राह आसान नहीं है लेकिन,
अवरोधों के नक्षत्र में जीने की चाह अभी बाकी है,

पत्थर के शहर में इंसानों को झुलसते हुए देखा है मैंने,
पर उस झुलसते हुए इंसान का सुलगना अभी बाकी है,

दरारें बहुत दिखती हैं रिश्तों के मकां में आजकल,
पर उन मकानों का अभी खण्डहर होना बाकी है,

झुर्रियाँ चेहरे पर लिए खड़ा था एक दोस्त मेरा,
परिवर्तन के कोलाहल में उसका जवाँ होना बाकी है,

क़लम थक चुकी है मेरी कहानियाँ लिखते-लिखते,पर
अभी हर्ष के भाव से एकदम भरी कहानी लिखना बाकी है,

जीवन के इस मरूस्थल में जीवन जीना बाकी है।

हर्षित दीक्षित “हर्ष”