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बस कंडक्टर

बचपन में अरमान बुने जो,
अगर आज पूरे होते,
सच कहते है कसम ख़ुदा की,
बस कंडक्टर हम होते ।

पूरी बस में घूम घूम कर,
सबसे पैसे लेते हम,
ना ना करता कोई अगर तो,
झापड़ भी जड़ देते हम ।

हर कोई रास्ता दे देता,
सीट कभी ना खोते हम,
दरवाजे पर झूल झूल कर,
बड़ी मौज कर लेते हम ।

दिन भर बस हम घूमा करते,
पढ़ने की टेंशन ना लेते
दिनभर FM सुनते सुनते,
मस्ती मे दिन कटते रहते ।

अगर कभी ठुक जाती बस तो,
पिटता बस का ड्राइवर ही,
कंडक्टर की जॉब में हमको,
लगा रिस्क ना थोड़ा भी ।

ठूस ठूस कर लाख सवारी,
करके अपनी जेबे भारी,
बड़ी ऐठ से फैल के थोड़ा
खिड़की खोल के सोते हम ।
बड़ी ऐश होती जो यारो,
बस कंडक्टर होते हम ।।

-सौरभ विंचुरकर