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फौजी की पत्नी

कलम उठाने का आज मौका है,
क्यूंकि आज उस फौजी की पत्नी के लिए दिल में वेदना है।
मन विचलित ये सोच रहा है की हर फौजी की पत्नी कैसे अपने दिल को समझाती होगी?
कैसे इस जंग के मैदान में खुद के सपनों के घरौंदो को सुरक्षित अभी भी पाती होगी?
क्या उसके दिल में ये ख्याल ना आता होगा की
क्यूँ दो वक़्त की रोटी के लिए,वो अपने परिवार को खतरे में डालती है, कैसे वो अपने पति को सरहद पर जाने से ना रोक पाती होगी?
क्या उसका अधूरा परिवार उसको अकेलेपन का एहसास ना दिलाता होगा ?
कैसे वो अपने बच्चों को पापा आएंगे लौट कर जंग से इस बात का विश्वास दिलाती होगी?
क्या उसका मन ना दुखी ना होगा जब वो दिवाली का दिया अपने पति के संग ना जला पाती होगी ।
कैसे वो अपने सास ससुर को ,उनके बेटे की तरह सहारा और प्यार दे पाती होगी, उनका बेटा सरहद से लौट कर उनका सहारा बनेगा ये एहसास कैसे दिलाती होगी,
उनका बेटा ही अन्तिम समय में उनको कंधा देगा ये बात उनके दिल कैसे लाती होगी।
ये विचार क्या उसको ना आता होगा की अखिर कब तक ऐसे ही कंपकन्पाते हाथ से अपनी माँग को सिन्दूर से भरे।
क्या वो ये ना सोचती होगी की फौजी की पत्नी ही सिर्फ इस गर्व के के लिए अपने दिल के सुकून को क्यूँ छोड़ दे।
क्यूँ मैं दूसरे देशवाशियों की तरह अपने पति के संग खुशी और सुकून की जिन्दगी जी लूं ।
पर इन सब सवालों का जवाब भी मैनें पाया है,
की जितना योगदान वो एक फौजी पति देता होगा देश के लिए ,उनकी पत्नी भी इस बलिदान में उनका साथ निभाती होगी।
वो ही अपने पति को एहसास कराती होगी,की ये जन्म तुमने भारत माँ के लिए लिया है,ये जीवन तुम उनकी सेवा में समर्पित करो,मैं तुम्हारे माँ बाप का सहारा बन जाऊंगी,
मैं हमारे बच्चों के लिए माता पिता दोनों का फ़र्ज निभाउंगी ।
तुम जाओ जंग लड़ो उन 47 भाईयों और उनकी पत्नियों के लिए जो अब मांग में सिन्दूर ना सजा पाएँगी ।

मैं तुम्हारी अर्धांगनी हूँ , इसलिए तुम अगर भारत माँ के बेटे हो ,तो मैं भी उस माँ की बेटी बन जाऊंगी , तुम जाओ जंग लड़ो मेरे वीर सिपाही मैं तुम्हारा हर कर्तव्य निभाऊँगी,हर कर्तव्य निभाऊँगी ।

तनुश्री उपाध्याय