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पड़ाव

दिल बदले,
सब बदल गया
उम्र के पड़ाव के साथ
जिंदगी बदल गई
अब नही रहा वो
बचपन का मौसम
शरारतें कहीं खो गई
अब गुमसुम
एक छोटी सी बात का
बतंगड़ बन गया
मिलने जुलने का ढंग
भी बदल गया

कभी नजदीकियां थी इतनी
कि कटता नही था
एक भी पल अलग-अलग
अब तो बचपन की दोस्ती
बुढ़ापे की दुश्मनी बन गई
आखिर ये क्या हो गया
दिन बदले, सब बदल गया

रिश्तों की डोर में
अब गांठे लग गई
कल तक जिनके बिना रहना
गंवारा नही था
आज उनकी शक्ल देखने में
शर्म महसूस होने लगी
दिल बदले, सब बदल गया
उम्र के पड़ाव के साथ
जिंदगी बदल गई

– सौरभ चन्द्र पांडे