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नही तो गिर जाऊंगा मैं

तन्हा तेरे दर से गुजर जाऊंगा मैं
हसरतें दीदार को, ठहर जाऊंगा मैं

यूँ तो तेरी पाजेब की, झंकार है कानों में
तेरा अहदे शबाब देखकर, बहक जाऊंगा मैं

हादसा हुआ दिल में, कुछ ऐसा अभी
ये सरकशीं को देखकर सहर जाऊंगा मैं

ख़िज़ा नसीब रहाताउम्र जीवन मेरा
आस्ताने यार सामने है क्यूँ मुकर जाऊंगा मैं

इस स्याह रात में, है तीरगी चारों तरफ
ये नाज़नीं रहबर बन के चल, नहीं तो गिर जाऊंगा मैं

हमने भी बला की रातें, गुज़ारी हैं कभी कभी
कभी न करना जिक्र हिज़्र का, वरना डर जाऊंगा मैं |

– परितोष कुमार शिल्पकार