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तुम चलना साथ मेरे

झींगुरों के स्वरों के साथ जागते
चाँद के उगने से
कलरवों की ध्वनि से मोटरों के पों पों तक
तुम चलना साथ मेरे।

चार चम्मच चीनी की मिठास से भरे
गरमागरम चुस्की से
चीनी मुक्त चाय की
आख़िरी लम्बी सुड़ुप तक
तुम चलना साथ मेरे।

मेहँदी रंजित मृदु स्पर्श से
कुम्हलाती झुर्रियों को पार करते
हथेलियों के हड्डी हो जाने तक
तुम चलना साथ मेरे।

संस्कृति और संस्कारों के साथ
अभीत हो
टकराती मज़हबी दलीलों के विराम तक
तुम चलना साथ मेरे।

वाल्मीकि के “जूठन” से
स्वर जो मुखरित हुए थे
विरूद्ध अश्पृश्यता के,
पथ के, निष्कंटक हो जाने तक
तुम चलना साथ मेरे।

लवलेश वर्मा