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ठंडी चाय

चाय तो मुझे शुरू से पसंद थी ।
पहली बार मिला तो उसने बताया, उसे मैं पसंद थी और मुझे चाय।
चाय पर हम मिलने लगे ।उसकी बातों की चुस्कियों में मैं खोने लगी।बातें लंबी होती गयी और चाय ठंडी ।
उससे नजदीक होती गयी चाय से दूर ।अब चाय मिलने का बहाना था ।मैं घंटों कप थामें उसकी बातों को पीने लगी ।कई दफा उसने कहा ‘तुम्हें ठंडी चाय पसंद नहीं है ना ?’
“हाँ, पर तुम्हारी बातों के साथ चाय ठंडी नहीं लगती “।इतना कहकर मुस्कुरा देती थी ।
हाँ इंसान बदल जाता है और आदतें बदल जाती हैं।जैसे एकदम गरम चाय पीने वाली मैं कब ठंडी चाय पीने लगी पता ही नहीं चला।
पूरे एक साल हो गये उससे मिले।प्यार कब बेरुख़ी में बदला नहीं मालूम और इतना बेपरवाह की मेरी अहमियत उसकी जिंदगी में कम होने लगी ।फिर फ़ोन और चाय पर मिलना भी बंद।
चाय अब भी ठंडी होती रही पर उसके इंतेज़ार में।
आज बुलाया है फिर से चाय पर ।जल्दी जल्दी तैयार हुयी।आज जो बिछड़ गया था, मिलने वाला था ।उसके आने से पहले दो कप चाय पी चुकी थी ।तीसरी कप हौले से होंठ से लगाया ही था कि आवाज़ आयी ।
“कैसी हो ?बात करनी है।”मैं चाय की एक एक चुस्कियों का मज़ा ले रही थी।उधर ध्यान ही नहीं दिया ।पता नहीं लोग कैसे ठंडी चाय पी लेते हैं।
कप रखा तो देखा वो कुछ पूछ रहा था ।
“सॉरी,क्या हम फिर से चाय पर मिल सकते हैं और कब से इतनी गरम चाय पीने लगी तुम ?
मैंने पर्स से पैसे निकालें और चायवाले लड़के को थमा दिया और जाने लगी।
उसकी आवाज़ आयी “तुमने जवाब नहीं दिया ।”
मैं रुकी और मुड़ी, मुस्कुराते हुए कहा “देव मैंने ठंडे रिश्तें और चाय कब का छोड़ दिया है।”बाय।

-रोमा रागिनी