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औकात

वो क्या था? ..अचानक से हमारे मन में ये सवाल कौंधा।

एक धीमी सी सरसराहट होती मानो कोई धीरे-धीरे हमारे करीब आ रहा हो। मन में अजीब सी बेचैनी और उत्सुकता थी। सच कहूं तो हम डरे हुए थे। हां..ये जंगल था।

हमारी जिप्सी धीरे-धीरे जंगल के बीचों बीच बने कच्चे रास्ते पर बढ़ती जा रही थी। हम कुदरत के हर उस नज़ारे को अपनी आंखों में हमेशा के लिए कैद कर लेना चाहते थे जो शायद कभी दोबारा न मिले। हरे भरे खुले मैदानों में कुलांचे भरता हिरणों का मदमस्त झुंड जिनकी बेफिक्री में भी एक फ़िक्र छिपी थी। चहकते-मचलते पंछियों का सैलाब जो अपनी एक ही उड़ान में सारे जंगल को नाप डालने पर आमादा था। इधर-उधर फैली दीमक की बड़ी-बड़ी बाम्बियां। एक खोह में चुपचाप बैठ जंगल की ख़ामोशी महसूस कर रहा उल्लू जो हर आने जाने वालों को शक भरी नज़रों से देख रहा था। पेड़ों पर उछल कूद कर जंगल की शांति को भंग करता लंगूरों का नटखट लेकिन सतर्क कुनबा। सुबह की फैली ओस। उस ओस से छन-छन कर इतराती हुई पत्तों पर गिरती वो सूरज की पहली किरणें। उन किरणों को खुद में समेट कर बिखेरती हुई मोती सी चमकती अनमोल बूंदे। इन सबके बीच जंगल का वो बेख़ौफ़ सन्नाटा और उन सबके बीच हम।

जैसे-जैसे वक़्त बीतता गया हमारी नज़रें जंगल के हर कोने में बस उसे ही ढूंढने लगीं। आखिर ढूंढें भी क्यों न वो जंगल का राजा जो ठहरा। लेकिन हम एक गलती कर बैठते हैं। राजा साहब को देखने की चाहत में इतने खो जाते हैं कि कई दफा जंगल के कैनवास पर बनी अनेक खूबसूरत कलाकृतियां अनदेखी और अबूझ रह जाती हैं।

“बड़े नाले के पास टाइगर ने साइटिंग दी है, शायद किल भी किया है..बन्दर बहुत शोर मचा रहे हैं”…गाइड ने कहा।

इतना सुनना था की हमारी धड़कनें तेज़ हो गयी। अब जाकर जंगल का असली मतलब समझ में आया था। जंगल में होने का एहसास क्या होता है ये हर सांस के साथ महसूस हो रहा था। अब हम धीरे-धीरे बड़े नाले की तरफ बढ़ रहे थे। घटती हुई वो दूरी हमें रोमांच और डर की ऐसी मिली जुली खिचड़ी परोस रही थी जिसका स्वाद हमने आजतक नहीं चखा था।

“श्श्श्…शांत ..सभी शांत हो जाइए” गाइड ने लगभग डराते हुए कहा।

गौर से नीचे देखिए ,बिल्कुल फ्रेश पगमार्क हैं। मेल है.. अभी रास्ता पार किया है और कुछ घसीटने के जैसा भी दिखाई दे रहा है.. मतलब किल तो किया है और घसीट कर झाड़ियों में ले गया है हीरो।

गाइड के लिए ये शायद रोज़ का काम था और ये बिल्कुल आम बात। लेकिन हमारी हवा टाइट थी।

भैया ..अगर इन केस टाइगर ने अटैक कर दिया, मतलब मान लो न यार कि आज उसने अपना मेनू बदल मारा और कहा नहीं आज तो आदमी चलेगा, तो इस ओपन जिप्सी में अपन क्या करेंगे? आपके पास कोई गन-वन तो है न? – खुद को संतुष्ट करने के लिए मैं गाइड से पूछ बैठा।

“गन अंदर लाना मना है सर”- उसने बड़े ही आराम तलब अंदाज़ में जवाब दिया मानों मैं गन की नहीं गर्लफ्रेंड की बात कर रहा हूं।

“तो अगर टाइगर का मूड हुआ तो हम क्या करेंगे”???

“फिर तो सर जो करेगा वही करेगा” अपने पास भागने के सिवा और कोई रास्ता नहीं रहने वाला।

ये सारी बातें चल ही रही थी की अचानक झाड़ियों में एक सरसराहट सी हुई। इस से पहले की हम कुछ समझ पाते एक रौबीला सा शानदार जानवर हमारी जिप्सी के आगे खड़ा था। हम सबका मुंह खुला था और दिमाग सुन्न। आंखें फैली हुई। और हर तरफ पसरा हुआ एक अजीब सा सन्नाटा। हम सब उसकी आंखों में आंखें डालकर देखने की हिम्मत जुटा रहे थे और वो शान से खड़ा अपनी धुन में हमें यूं अनदेखा किए जा रहा मानो हम उस से होली का चंदा मांगने आए हैं। तभी अचानक उसके तेवर बदले और वो धीरे धीरे हमारी गाड़ी की तरफ बढ़ने लगा।

“पीछे लो.. पीछे लो” गाइड ने घबराहट भरी आवाज़ में कहा।

और पीछे ..और पीछे।

रोको।

पीछे लो …आराम से ..गाड़ी बंद मत करना।

ये सिलसिला थोड़ी देर तक चलता रहा। थोड़ी देर बाद बाघ बीचों बीच अपने शाही अंदाज़ में बैठ गया और हमारी तरफ देखने लगा। मानो उसने जिप्सी के पीछे आने का स्वांग सिर्फ हमें डराने के लिए ही रचा था। हम शहर के पढ़े-लिखे लोग आज उस एक जानवर के सामने बहुत ही कमज़ोर और असहाय महसूस कर रहे थे। हमारी सारी पढ़ाई, नौकरी, गाड़ी, बंगला, सारी भागदौड़ आज एक पल के लिए बेमानी लग रही थी। हमारी ज़िन्दगी इस वक़्त एक जानवर के मूड पर निर्भर थी और वो था की हमें अपनी आत्ममुग्ध नज़रों से घूरे जा रहा था। मानो कह रहा हो अगर शहर तुम्हारा है तो जंगल मेरा है और यहां मेरी हुकूमत है। ये धरती जितनी तुम्हारी है उतनी मेरी भी है। हां, वो यहां का राजा था। उसने हमें हमारी औकात दिखाई थी।

– अमित कुमार गुप्ता