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एक लड़की है जो !

एक लड़की है जो मुझसे गुस्सा है
मुख़्तसर सा यह किस्सा है
एक लड़की है जो मुझसे गुस्सा है

कैसे बोलूं कौन थी वो
मेरे दिल में मौन थी वो
पहले पहल वो हँसती थी
मस्ती में कुछ कुछ कहती थी
कहते हैं मैंने एक दिन उसे रुला दिया
तबसे उसने भुला दिया
दोस्त बनी थी , प्यार हुआ
लेकिन यह एक तरफा वाक़या था
कई बार उसने आकर समझाया था
लेकिन मन अपनी मर्जी पर आमादा था
तो तबसे ही वो रूठी है

बीते कल का जो हिस्सा है
एक लड़की है जो मुझसे गुस्सा

कॉलेज खत्म हुआ ,
इस बात को भी अब वक्त हुआ
दोस्त जो मेरे आस पास थे
इस उलझे मसले के बयां रहे
किसी ने आगे बढ़कर कुछ किया नहीं
मैंने भी उस खालीपन को सहा नहीं
एक अफ़सोस ग़मज़दा ये किस्सा है
एक लड़की है जो मुझसे गुस्सा है

जाते जाते कह न सका उससे जो कुछ कहना था
अपनी हर गलती पर चाहत माफीनामा था
लेकिन फिर कुछ यूं हुआ ऐसा
दिल तो दिल नजर का भी रहा फासला
एक अंतहीन से पथ पर
वो यूँही अनसुना छोड़ गया
अब नहीं उम्मीद करता
न इंतजार करता है
एक गम है जो और गमगीन रहता है
अब आंखों का फूल भी रंग विहीन रहता है
मेरे हर किस्से का छोटा सा ये किस्सा है
एक लड़की है जो मुझसे गुस्सा है

– कार्तिक सागर समाधिया