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इंटरव्यू

आज उसकी जिंदगी का सबसे खास पल था।अपने सपने को वो पाने जा रही थी।हमेशा की तरह शांत और गंभीर रहने वाली कुहू आज नर्वस भी थी। जैसे ही पता चला कि उसका नम्बर सेकंड शिफ्ट में है, उसने थोड़ी राहत की सांस ली। वेटिंग रूम में आंखे बंद करते ही उसके सामने 5 साल पुराना दृश्य दौड़ने लगा ।गांव से मैट्रिक पास कर लेना मुश्किल हालातों में भी हो गया लेकिन उसकी मेडिकल की तैयारी के लिए अब घर से बाहर जाना जरूरी था।
घर की कमजोर स्थिति को वो अच्छे से जानती थी,खैर बुआ के यहाँ रहने का बंदोबस्त हो गया।खास बात यह थी कि उसी की उम्र की बुआ की लड़की मोना भी मेडिकल की तैयारी कर रही थी।दोनों अच्छे दोस्त भी थे ।जहाँ मोना को तैयारी के लिए एक बड़ी कोचिंग मिली वही कुहू के पास कोचिंग की मोटी रकम भर पाना तो दूर अच्छी किताबें खरीद लाना भी मुश्किल था।समय बीतता गया और दो साल बाद भी दोनों में से कोई एग्जाम नही क्लियर कर पाया।
इधर बुआ के यहाँ नौकरानी की जगह कुहू की हो चुकी थी।पर कुहू ने हिम्मत नही हारी ।आखिरकार मोना को अच्छी मोटी डोनेशन पर प्राइवेट कॉलेज में एड्मिशन मिला और कुहू के लिए सरकारी कॉलेज में बी ए में दाखिले के साथ ही शादी की बातें शुरू हो गयी।कुहू के बहुत समझाने पर उसके घर वाले शादी के लिए तो रुक गए पर उसे घर लौटना पड़ा। 5 साल बीतने के बाद कुहू अब जाकर मेडिकल में दाखिला पा सकी।देर ही सही पर उसे आज अपनी मंजिल पाकर किसी बात का अफसोस नही हो रहा था।पढ़ाई के साथ – साथ वो अपने जैसे बच्चो के लिए कुछ करना चाहती थी।
दिमाग मे चल रही इन बातों ने पता नही कब उसे नींद में डूबा दिया। अचानक उसकी झटके से आंखे खुली तो देखा कि डॉ कुहू सिंह का नाम पुकारा जा रहा है। कॉटन साड़ी को संभालते हुए तेज़ क़दमों के साथ वह इंटरव्यू रूम की तरफ बढ़ी।औपचारिक सवालों के पूरा होने के बाद संयुक्त राष्ट्र ट्रस्ट ने पूछा,डॉ कुहू आप अपनी प्राइवेट क्लिनिक ,हॉस्पिटल में हमारे दिए फण्ड से ज्यादा पा सकती है फिर ये नॉर्मल सोशल वर्क क्यों?
कुहू के चेहरे पर हल्की मुस्कान और जवाब था ,सर किसी भी जीवन की मूल आवश्यकताएं शिक्षा और स्वास्थ्य है।स्वास्थ्य के क्षेत्र में तो मैं हूँ ,लेकिन जरूरतमंद को शिक्षा और अपना समय देकर मैं कई डॉ कुहू बनाना चाहती हूँ।और मेरा सपना यही है कि कई डॉ कुहू अपने जैसे जरूरतमंदों के लिए मिशाल बने।

– उत्तरा सिंह