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आहत हूँ

आहत हूँ
इस बाजारू सभ्यता से
जिसका कोई धर्म नहीं
फिर भी उतरा हूँ
सच जानकर
सच्चाई से रूबरू कराने

जानता हूँ
कल कीचड़ उछलेगा
पाक ईमान पर,
धज्जियां उड़ाई जाएंगी
फिर भी डटा हूँ
अपने मन और
सबसे लड़कर

मुझे मालूम है
ये दुनिया ऐसी है और रहेगी
अपने ही हितों का गला घोटेगी
किसी के भले की बात बेमानी है

यहां लोग गलत हो कर भी
अपने पाप गंगा में धुलकर
अंजुलि में भरकर जल
सूर्य को अर्ध्य देकर
सोचेंगे निष्कलंक हैं

फिर नई संभावनाएं तलाशेंगे
अपनी पशुता मिटाने

तुम समाज हो
विकृत मानसिकता पाले
कभी तय नहीं कर सकते
क्या सही है और क्या गलत

आहत हूँ
इस बाजारू सभ्यता से
जिसका कोई ईमान नहीं
फिर भी उतरा हूँ
सच जानकर

सच्चाई से रूबरू कराने..

– सौरभ चंद्र पाण्डे