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आईने की बिंदी

कुछ तो बात होती है उस बिंदी में।
जो हमेशा उस आईने पे लगी रहती है।।

एक प्यार, एक माँ का अहसास सा दिलाती है वो बिंदी
एक परित्याग का एक दर्द का अहसास भी है वही बिंदी।।

किसी की ख्वाहिश का अंत है वो बिंदी।
तो किसी के सपनों के पर भी है वो बिंदी।।

कभी माँ की ममता सी है वो बिंदी।
तो कभी जिंदगी की कश्मकश की ढाल सी है वो बिंदी।।

किसी के लिए वो मामूली सी है।
तो किसी के लिए सारा जहाँ समेटे हुए है वो बिंदी।।

अक्सर ओझल सी रहती है वो बिंदी।
पर जब माथे पे लग जाये तो ख़ुशियों सी खिल जाती है बिंदी।।

न कोई गम है न कोई डर है उस बिंदी को।
क्योंकि हर खुशियों का जहाँ है वो बिंदी।।

जिस घर के आईने में वो बिंदी।
मान लो जहाँ की खुशियाँ समेटे हुए है वो बिंदी।।

कुछ तो बात होती है उस बिन्दी में।
जो हमेशा उस आईने पे लगी रहती है।।
धुंधली सी चिपकी होती है आईने पर,
नजरें मिलते ही समेट लेती है जहाँ।।

– नितिन भुमरकर