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अधूरा ख़्वाब

बड़ी झील के पास लहरों में हो रही हलचलों के बीच उसने मेरे शानो पर सर रखते हुए पूछा,

हम एक साथ ख़्वाब क्यों नहीं देख सकते?
मैंने कहा,

मैं अक्सर उस वक़्त ख़्वाब देख रहा होता हूँ जिस वक्त तुम नींद के गहरे आगोश में अपनी बाहें किसी हसीन सपनें की पीठ पर बांधे एक खूबसूरत दुनिया में घूम रही होती हो।
मैं अपने कमरे में जलते लैंप पोस्ट की दुधिया रौशनी में किसी किताब के पन्ने पलटते हुए उसके किरदार के साथ तीसरी दुनिया घूम रहा होता हूँ।
सुबह के सूरज से कभी मेरा सामना नहीं हुआ ठीक वैसे ही जैसे कभी तुमने रात के अंतिम पहर में जागकर कमरे में फैले सन्नाटे को महसूस नहीं किया।
हम दोनों के रास्ते अलग है बिल्कुल जुदा…
बालकनी से आती सूरज की पहली किरण जब तुम्हें छूकर निकल रही होती है उस वक़्त मैं गहरी नींद के आगोश में होता हूँ।
रात की तन्हाई जब कमरे के बीच फैले सन्नाटे के साथ मेरे मन को कचोटने लगती है तब तुम नींद के साथ सैर कर रही होती हो।
ऐसा कोई वक़्त नहीं है जब हम साथ हो या,
मैं सुबह की पहली किरण को तुमसे गुजरकर छनता हुआ देखूं या रात के अंतिम पहर में तुम मेरे साथ होकर कमरे में फैली तन्हाई एवं सन्नाटों को दूर करो।
बस इसीलिए हम एक साथ ख़्वाब नहीं देख सकते जाना…

पंकज कसरादे