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अच्छे लगते हो

जब भी मिलते हो ,तुम अच्छे लगते हो
कभी मेरी डायरी के पन्नो में,
तो कभी साहित्य की बहस पर
अक्सर तुम झलकते हो,
वैसे तो तुम बड़े जिद्दी हो
मजाक समझने में भी पिद्दी हो,
याद है जब तुम्हारी दी हुई बालियों को मैंने ठुकराया था,
उस गुलाब के लिए तुम पर चिल्लाया था
मेरी किताब में रखा आज भी ,
वो हक़ जताता है,
तुम्हारी यादों सा मुझे सताता है
जिंदगी से हारती हुई जब भी आँखे बंद करती हूं,
जीत की तरह अक्सर तुम दिखते हो,
मेरे हौसलों में यूँ ही तुम्हारा साथ दिख जाता है
चाय वाला नुक्कड़ आज भी तुम्हे बुलाता है
अच्छे लगते हो तुम जब भी
पास न होकर भी पास होते हो,
कस्तूरी की खुश्बू से अहसास होते हो,
हर मुश्किल अब आसान लगती हैं
तुम जब भी अपना कहते हो,
हाँ,तुम अच्छे लगते हो जब भी मिलते हो

-उत्तरा